Navel Treasure Hunt:
सुबह का वक्त था। बाहर चिड़ियों की चहचहाहट, अंदर मोबाइल का अलार्म – और मैं, एक आम इंसान की तरह, बिस्तर में लेटा हुआ अलार्म को पांचवीं बार स्नूज़ कर चुका था। जब आखिरकार बिस्तर छोड़ने की हिम्मत जुटी, तो मैंने एक लंबी अंगड़ाई ली और टी-शर्ट ऊपर सरक गई। अंगूठा और तर्जनी पेट पर घूमते हुए नाभि की तरफ बढ़े — जैसे कोई आदतन जेब टटोलता है। और तभी हुआ कुछ ऐसा, जिसे अब मैं एक पवित्र खोज कहता हूं।
मेरी उंगलियों को कुछ मुलायम, गोल और हल्का सा स्पंजी महसूस हुआ। पहले तो लगा शायद कोई कीड़ा है, लेकिन गौर से देखने पर समझ आया — यह था बालों और रेशों का एक गोल गुच्छा, जो बिल्कुल किसी छोटी सी रुई की गेंद जैसा लग रहा था। इसमें थोड़ी नमी और बनावट थी, जैसे शरीर ने खुद कोई प्राकृतिक क्राफ्ट प्रोजेक्ट तैयार कर दिया हो।
पहला ख्याल आया – “क्या मैं सफाई के मामले में लापरवाह हूं?”
दूसरा सवाल उससे भी तेज़ी से आया – “मैं अब तक इससे अनजान कैसे रहा?”
जैसे-जैसे मैं सोचता गया, मुझे एहसास हुआ कि इंसान की जिंदगी में कई बार शरीर खुद हमें चौंका देता है। बाल झड़ना, नाक से आवाज़ें आना या कान में गुदगुदी — यह सब तो जाना-पहचाना था। लेकिन नाभि में यह छोटा-सा “खजाना”? यह तो कोर्स से बाहर का प्रश्न था।
मैंने उस गुच्छे को tissue में रखा और थोड़ा निरीक्षण किया। वह छोटे-छोटे धागों, बालों और शायद कुछ डेड स्किन से बना था। मैंने Google खोला और टाइप किया —
“Why do I have fluff in my belly button?”
और जैसे ही रिज़ल्ट आए, मेरी आंखें खुल गईं — मैं अकेला नहीं था! यह एक वैश्विक phenomenon था। Reddit, Quora, YouTube — हर जगह लोग इस ‘नाभि फ्लफ’ को लेकर बातें कर रहे थे। कुछ ने तो फोटो भी पोस्ट की थी जैसे कोई खोजी वस्तु मिली हो। उस पल मुझे सच्ची राहत मिली — मैं अजीब नहीं था, मैं ‘common’ था!
अब सवाल था – ये आता क्यों है?
थोड़ा और पढ़ा तो पता चला — हमारे पेट के बाल इसमें सबसे बड़ा योगदान देते हैं। जब हम चलते-फिरते हैं या कपड़े पहनते हैं, तो घर्षण की वजह से कपड़ों के महीन रेशे टूटकर पेट के बालों द्वारा धीरे-धीरे नाभि की ओर धकेले जाते हैं। ये छोटे-छोटे रेशे, पसीना, डेड स्किन और नमी से मिलकर एक छोटा सा गुच्छा बनाते हैं — और नाभि, अपनी गड्ढेनुमा बनावट के कारण, इसे अपने पास जमा कर लेती है।
कुछ लोग इसे ‘lint trap’ कहते हैं, कुछ ‘belly button fluff’ — और मैं इसे अब ‘सुबह का खजाना’ कहता हूं।
अब ज़रा सोचिए — जिस शरीर को आप रोज़ नहलाते हैं, सजा-संवार कर ऑफिस या मीटिंग में भेजते हैं, वह अचानक सुबह आपको ऐसा छोटा सा सरप्राइज दे! पहले तो थोड़ी हिचक होती है — “इतनी साफ-सफाई के बाद भी?”, लेकिन फिर एक हल्की सी मुस्कान आ जाती है — “वाह! शरीर अभी भी कुछ नया कर रहा है।” एक तरह से यह शरीर का DIY रिमाइंडर है कि वह अब भी एक्टिव है।
फिर शुरू हुई मेरी रोज़ की खोज:
हर सुबह उठकर हाथ हल्के से पेट की ओर ले जाता और देखा जाता कि आज क्या ‘fluff treasure’ मिला। कभी मिलता, कभी नहीं। जब नहीं मिलता, तो दिन अधूरा-सा लगता। और जब मिलता, तो वही अहसास होता जैसे बचपन में मिट्टी में चमकता कांच का टुकड़ा मिल जाए — थोड़ा चौंकाने वाला, लेकिन आकर्षक।
कुछ दिनों बाद मैंने ऑफिस में मज़ाक में एक दिन कहा —
“यार, आज फिर मेरी नाभि से खजाना निकला!”
सभी हंसने लगे। लेकिन हँसी के बाद धीरे-धीरे सबने स्वीकार किया कि हाँ, उनके साथ भी ऐसा होता है। किसी ने कहा कि वो इसे अनदेखा कर देते हैं, किसी ने बताया कि वो इसे वॉशरूम में tissue पेपर में फेंकते हैं, जैसे कोई पुराना नोटबुक का टुकड़ा हो। लेकिन बात साफ थी — ये सबके साथ होता है।
क्या इसे रोका जा सकता है?
जवाब है: थोड़ा बहुत हाँ।
- पेट के बालों को ट्रिम करने से यह प्रक्रिया धीमी हो सकती है।
- सिंथेटिक कपड़े पहनने से फाइबर कम टूटते हैं।
- नहाते वक्त हल्के हाथों से नाभि की सफाई करने से buildup नहीं होता।
पर असली सवाल ये नहीं है कि इसे रोका जाए या नहीं — सवाल यह है कि क्या हम इसे अपनाते हैं या नहीं।
अब मैं हर हफ्ते नाभि की सफाई करता हूं, लेकिन जब भी कोई fluffy surprise निकलता है, तो एक हल्की सी मुस्कान आ जाती है। जैसे शरीर कह रहा हो — “मैं अब भी कुछ बना रहा हूं, देख लो!”
एक दिन तो मैंने मज़ाक में अपने एक दोस्त को इसकी फोटो भेजी — ये कहते हुए कि “भाई, मेरा शरीर खुद गिफ्ट बना रहा है!” उसने हँसते हुए जवाब दिया — “तू अब हद से आगे निकल गया है।” लेकिन मुझे खुशी हुई कि कम से कम कोई समझ पा रहा है।
अब सोचिए — इतने सालों तक किसी ने ये नहीं बताया।
ना किताबों में, ना स्कूल में, ना हेल्थ क्लास में।
“बेटा, नाभि की देखभाल करना” — ऐसा वाक्य कभी सुनने को नहीं मिला। हम बाल धोते हैं, दांत साफ करते हैं, नाखून काटते हैं — लेकिन नाभि? वो तो जैसे शरीर का भुला हुआ कोना है, जो खुद अपनी दुनिया में व्यस्त रहता है।
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अब कल्पना कीजिए — कोई बाहरी ग्रह का प्राणी पहली बार इंसानों का शरीर देखे और उसे बताया जाए कि इंसान की नाभि से रोज़ एक fluffy सी चीज़ निकलती है, जो बालों, धूल और कपड़े के रेशों से बनी होती है — तो शायद वो कहेगा —
“Wow, ये तो प्राकृतिक रुई बनाते हैं!”
या शायद इसे कोई अद्भुत जैविक नमूना मानकर संग्रहालय में रख दे!
पर हमें तो पता है — ये एक आम, छोटा-सा लेकिन दिलचस्प हिस्सा है हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी का। और इसीलिए, मैंने अपने जीवन को दो हिस्सों में बांट लिया है —
- जब मुझे नाभि-खजाने की जानकारी नहीं थी
- और जब से यह ज्ञान प्राप्त हुआ है
अब हर सुबह की शुरुआत होती है – हल्के से पेट पर हाथ फिराने से। और अगर कुछ fluffy मिले, तो दिन बन जाता है। और अगर न मिले, तो लगता है जैसे कुछ छूट गया।
इस अनुभव ने मुझे सिखाया —
ज़िंदगी सिर्फ बड़े लक्ष्यों या रोमांच से नहीं बनी होती।
उसमें ये छोटे-छोटे अजूबे भी होते हैं — जैसे नाभि का खजाना —
जो हमें याद दिलाते हैं कि इंसान होना एक जटिल, सुंदर और कभी-कभी हल्के से अजीब अनुभव है।
तो अगली बार जब आप सुबह उठें, एक लंबी अंगड़ाई लें और आपका हाथ नाभि की ओर जाए — तो डरिए नहीं। अगर वहां कोई fluffy सा गोला मिले — तो समझ लीजिए:
आप भी अब उस गुप्त क्लब का हिस्सा हैं, जिसे हम प्यार से कहते हैं –
“Navel Treasure Hunt-Subah Ki Sabse Badi Khoj”।