The Dopamine Loop Trap

Habit: The Dopamine Loop Trap

हम समझते थे सबसे बड़ा नशा चाय है… पर असली नशा तो ये है — एक ऐसा invisible नशा जिसे आज की भाषा में ‘social media addiction’ कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

आजकल हर हाथ में एक मोबाइल है, और हर मोबाइल में छिपा है एक ऐसा नशा जो न दिखता है, न सुनाई देता है… बस लगता है — नाम है डोपामीन (Dopamine)

सुबह उठते ही अलार्म बंद किया, और फिर WhatsApp पर Good Morning की 14 तस्वीरें, Instagram की 37 reels, और फिर YouTube Shorts का गड्ढा – “बस 5 मिनट और” कहते-कहते आधा घंटा निकल गया। क्या आपको भी यही होता है? बधाई हो! आप dopamine के हाइवे पर तेज़ रफ्तार में दौड़ रहे हैं — और ब्रेक तो जैसे है ही नहीं।

डोपामिन कोई प्रोटीन पाउडर नहीं है, ये दिमाग में खुशी का इशारा भेजने वाला रसायन है। जब कोई reel पसंद आती है, जब पोस्ट पर लाइक आते हैं, जब कोई notification टन-टन करता है — तब ये डोपामिन हमारे दिमाग में चुपचाप टपकता है। और हम बोलते हैं, “चलो बस एक और वीडियो देख लेते हैं।”

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये “डोपामिन का नशा” असल में हमें ही खा रहा है?


Likes, Loops & Lost Time

मैंने तो बस टाइम देखने के लिए फोन उठाया था… और तीन घंटे बाद पता चला कि नींद भी गई और आत्मा भी।

पहले हम तय करते थे कि क्या देखना है, अब algorithm बताता है कि हमें क्या देखना चाहिए। Reels, Shorts और Stories — सब एक सुनियोजित डोपामिन इंजीनियरिंग हैं। हर लाइक, हर शेयर, हर swipe एक छोटी-सी डोपामिन की गोली जैसा असर करता है। और हम उस गोली के पीछे-पीछे भागते रहते हैं।

UK की Beeban Kidron नाम की online safety एक्टिविस्ट ने हाल ही में ब्रिटिश सरकार से अपील की कि influencer culture और dopamine loops से भरी social media addiction की दुनिया को detox किया जाए कि इन डोपामिन लूप्स को detox किया जाए। उनका कहना था, “ये कोई nanny-state का मामला नहीं है, ये आज की जरूरत है।” और वो बिल्कुल सही हैं।

5Rights Foundation जैसी संस्थाओं ने बताया कि ये dopamine-triggering features कैसे बनते हैं:

  • लाइक और शेयर की गिनती
  • गायब हो जाने वाली Stories (Snapchat, Instagram)
  • Constant notifications
  • Endless scroll फीचर

इन सबका मकसद होता है — आपको स्क्रीन से जोड़े रखना, चाहे आपकी ज़िंदगी वहीं अटक जाए।

Digital Snacks, Real-Life Starvation

पहले बोरियत का मतलब था — बैठे-बैठे कुछ सोचना, छत देखना, या फिर कोई बचपन की याद आना। अब बोरियत (boredom) आते ही हाथ खुद ही पॉकेट में चला जाता है।

बस एक reel देखनी थी। पर वही एक reel, तीन बनती है, फिर दस… फिर guilt का झटका। वो guilt जो कहता है — “क्यों देख ली इतनी reels यार?” और फिर वही guilt अगली reel में भी आराम से adjust हो जाता है।

अब किताबें boring लगती हैं, walks slow लगती हैं, और conversations बिना emojis के अधूरी लगती हैं। क्योंकि real life में वो swipe वाला thrill नहीं है।


Short Bursts, Long Damage

पहले बोरियत का मतलब था — बैठे-बैठे कुछ सोचना, छत देखना, या फिर कोई बचपन की याद आना। अब बोरियत (boredom) आते ही हाथ खुद ही पॉकेट में चला जाता है।

बस एक reel देखनी थी। पर वही एक reel, तीन बनती है, फिर दस… फिर guilt का झटका। वो guilt जो कहता है — “क्यों देख ली इतनी reels यार?” और फिर वही guilt अगली reel में भी आराम से adjust हो जाता है।

अब किताबें boring लगती हैं, walks slow लगती हैं, और conversations बिना emojis के अधूरी लगती हैं। ये overstimulation हमारी mental health पर असर डाल रही है और ध्यान की क्षमता को भी कम कर रही है। क्योंकि real life में वो swipe वाला thrill नहीं है।

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Am I Happy or Just Stimulated?

हर बार जब हम कोई reel देखते हैं, या नया content consume करते हैं, हमारा brain dopamine release करता है। ये एक short, sharp pleasure का signal होता है। पर ये pleasure temporary होता है। और दिमाग इतनी बार इस signal का मजा लेता है कि उसका threshold बढ़ जाता है। मतलब पहले जो चीजें खुशी देती थीं — अब उतनी खुशी नहीं देतीं।

पहले दोस्तों से मिलना exciting लगता था, अब लगता है — “फालतू टाइम वेस्ट है, memes भेज देंगे।” क्योंकि हमारा brain अब सिर्फ वही reward चाहता है जो तेज़, flashy और तुरंत मिले।

अब हर 10 मिनट में phone चेक करना normal लगने लगा है। Toilet में भी reels चल रही हैं, और lift में भी earbuds में कुछ न कुछ बज रहा है। दिमाग को अब एक पल भी बिना dopamine नहीं रहना आता।


What is Dopamine
What is Dopamine

असल मे डोपामिन है क्या?


डोपामिन एक रसायन (chemical) है जो हमारे दिमाग में बनता है। इसे न्यूरोट्रांसमीटर कहा जाता है, यानी ऐसा केमिकल जो दिमाग के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक संदेश पहुंचाता है। जब भी हम कोई ऐसा काम करते हैं जिससे हमें खुशी मिलती है — जैसे कि हमारा पसंदीदा खाना खाना, कोई तारीफ़ सुनना, सोशल मीडिया पर लाइक्स मिलना, या रील्स देखना — तो हमारा दिमाग डोपामिन रिलीज करता है। ये डोपामिन हमें अच्छा महसूस कराता है और दिमाग को यह सिग्नल देता है कि “ये काम अच्छा था, इसे दोबारा करना चाहिए।”

असल में डोपामिन हमारे मूड, ध्यान और मोटिवेशन को कंट्रोल करता है। लेकिन आजकल की दुनिया में, जहां हर चीज़ एक क्लिक पर मिल जाती है, वहीं डोपामिन भी बिना ज़्यादा मेहनत के मिलने लगा है — बस एक swipe, एक like, एक notification और दिमाग को खुशी का झटका लग जाता है। धीरे-धीरे हम इस ‘झटके’ के आदी हो जाते हैं।

अब होता ये है कि जब हम बार-बार जल्दी और आसान तरीकों से डोपामिन पाने लगते हैं, तो दिमाग को धीरे चलने वाली चीज़ें — जैसे किताब पढ़ना, ध्यान लगाकर काम करना, या बिना फोन के बैठे रहना — बोरिंग लगने लगती हैं। यही होती है डोपामिन की लत या dopamine habit।

डोपामिन खुद में बुरा नहीं है — वो तो ज़रूरी है। लेकिन जब हम हर वक़्त सिर्फ उसी के पीछे भागने लगते हैं, तो हम अपनी असली ज़िंदगी से disconnect हो जाते हैं। खुशी सिर्फ स्क्रोल करने से नहीं मिलती… कभी-कभी रुक कर जीने से भी मिलती है।

डिटॉक्स नहीं, डिसिप्लिन चाहिए

मान लेते हैं कि आपने Instagram, Facebook, TikTok सब uninstall कर दिए। लेकिन दिमाग का जो dopamine loop बना हुआ है, वो तो detox नहीं हुआ ना?

इसलिए ज़रूरत है mindset बदलने की। कुछ आसान उपाय:

  • सभी notifications बंद करें – हर beep पर ध्यान देना जरूरी नहीं।
  • Screen time limit सेट करें – हर फोन में Digital Wellbeing ऑप्शन होता है।
  • Single-tasking अपनाएं – एक समय पर एक काम। Multitasking सिर्फ dopamine trap है।
  • Dopamine fast करें – एक दिन बिना फोन, बिना स्क्रीन। बोरियत लगेगी, लेकिन ज़िंदा महसूस करेंगे।

इस addiction से बाहर निकलने का रास्ता सिर्फ एक है — रील से रियल लाइफ की तरफ लौटना। बाहर निकलिए, लोगों से बात करिए, किताब पढ़िए, चलिए-फिरिए। Dopamine फ्री नहीं है — हर बार जब आप scroll करते हैं, आप अपनी एक और क़ीमती चीज़ खोते हैं: वक़्त और होश।

एक आईना, एक सवाल

“कहीं हम reel के पीछे खुद को तो नहीं खो रहे?”

सोचिए — जब आप आखिरी बार हँसे थे, तब वजह reel थी या कोई असली इंसान?

जब आप खुश हुए थे, क्या वो लाइक की वजह से था या किसी पुराने दोस्त से मिलने की वजह से?

डोपामीन का ये लूप धीरे-धीरे हमें इंसान से मशीन बना रहा है — जो हर वक्त स्क्रीन से reward चाहती है।

UK एक शुरुआत कर चुका है। अब हमें भी ज़रूरत है कि हम बात करें — अपने बच्चों से, अपने दोस्तों से, खुद से।

अब मैं धीरे-धीरे आदतें बदलने की कोशिश कर रहा हूं। सुबह phone उठाने से पहले 5 मिनट बालकनी में बैठता हूं। खाना खाते वक्त phone से दूरी रखता हूं। हफ्ते में एक दिन airplane mode पर जीने की कोशिश करता हूं।

क्योंकि अब समय है — एक pause लेने का। एक detox का। एक “BMJ” कहने का… उन algorithms को, उन reels को, उन likes को — जो हमारी नींद, ध्यान और खुशियाँ चुरा रहे हैं।

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