Thoda Sa Aur……….
भारत में अगर किसी एक वाक्य को ज्यादा बोलने बाला डायलॉग घोषित कर दिया जाए तो शायद वह होगा – “थोड़ा सा और।” चाहे बात खाने की हो, कपड़ों की हो, डिस्काउंट की हो या फिर ज़िंदगी की, हमें हर चीज़ में थोड़ा सा और चाहिए। और मज़े की बात यह है कि हमें पता भी है कि हमारी प्लेट पहले ही फुल हो चुकी है, लेकिन दिल कहता है – भाई, ज़िंदगी इतनी छोटी है, थोड़ा और।
माँ का ‘थोड़ा सा और’
घर में जब माँ दाल पर तड़का लगाकर परोसती हैं तो प्लेट से आवाज़ आती है – “बस, बस, बस।” पर ज़ुबान से निकलता है – “थोड़ा सा और ।” और माँ को भी इस वाक्य से इतना प्यार है कि वह खुश होकर डाव-डाव कर देती हैं, फिर चाहे प्लेट में जगह हो या न हो। यही वजह है कि भारतीय प्लेटें और भारतीय पेट – दोनों में एक्स्ट्रा स्पेस का एक्स्ट्रा विश्वास हमेशा बना रहता है।
खाने-पीने में ‘Thoda Sa Aur’
शादी-ब्याह में खाना खा रहे हो और पंडित जी आशीर्वाद देने आए, तो आप थोड़ा झुकते हो। लेकिन ज्योंही छोले वाले भैया आते हैं, आप और झुककर कहते हो – “भैया, थोड़ा सा और।” और वह भैया भी दिलदार होता है। कड़छी भरकर दे देता है। फिर आप चावल वाले से कहते हो – “भैया, चावल, थोड़ा सा और।” और यह क्रम चलता रहता है जब तक आपकी प्लेट ‘थोड़ा सा और’ की धरती से ‘अब बस करो’ की दुनिया में न पहुँच जाए।
मार्केटिंग में भी काम करता है ‘थोड़ा सा और’
यह सिर्फ खाने तक सीमित नहीं है। शॉपिंग मॉल में जाइए। आपने पहले ही तीन जींस ट्राई कर ली। चौथी पर भी मन नहीं बना। लेकिन सेल्समैन कहता है – “भैया, ये वाली भी ट्राई कर लो, थोड़ा सा और अच्छा लगेगा।” और फिर आप ट्रायल रूम में जाकर अपनी आत्मा से पूछते हैं – “क्या मैं सच में चौथी जींस अफोर्ड कर सकता हूँ?” जवाब आता है – “नहीं।” लेकिन फिर भी आप कहते हैं – “ थोड़ा सा और डिस्काउंट मिलेगा तो ले लूँगा।”
रिश्तों में भी ‘थोड़ा सा और’
और भाई, पढ़ाई में तो यह सबसे बड़ा हथियार है। बच्चा स्कूल से आता है और माँ पूछती है – “कितना पढ़ाई हुआ?” बच्चा बोला – “दो घंटे।” माँ बोली – “थोड़ा सा और पढ़ ले।” बच्चा बोला – “मम्मी, थक गया।” माँ बोली – “थोड़ा सा और कर ले, टॉपर बन जाएगा।” और बच्चा सोचता है – “टॉपर बना तो क्या अमेरिका जाकर छोले-भटूरे में ‘थोड़ा सा और’ बोलेगा?”
हमारे थोड़ा सा और का असर फिटनेस इंडस्ट्री पर भी साफ दिखता है। जिम ट्रेनर कहेगा – “बस दस रेप्स करो।” भारतीय बोलेगा – “ठीक है, लेकिन प्रोटीन शेक में शुगर थोड़ा सा और डाल देना।” यही वजह है कि हमारे देश में जिम की मेम्बरशिप कार्ड ज़्यादा बिकते हैं, लेकिन एब्स कम दिखते हैं।
प्यार में भी देख लो। लड़का-लड़की फोन पर बात कर रहे हैं। लड़की बोली – “अच्छा अब रखती हूँ।” लड़का बोला – “बस पाँच मिनट और।” लड़की बोली – “नहीं, सोना है।” लड़का बोला – “थोड़ा सा और बात कर लो।” और ये थोड़ा सा और कभी-कभी सुबह तीन बजे तक पहुँच जाता है।
सरकार और पॉलिटिक्स का ‘थोड़ा सा और’
हमारे देश की पॉलिटिक्स भी इसी पर चलती है। नेता कहेगा – “हमने जनता को बहुत कुछ दिया।” जनता बोलेगी – “थोड़ा सा और दे देते तो अच्छा होता।” नेता ने सड़क बनाई, जनता बोली – “थोड़ा सा और चौड़ी हो जाती।” नेता ने फ्री सिलेंडर दिया, जनता बोली – “थोड़ा सा और मिलता तो पूरे साल काम आता।” मानो जनता और नेता का रिश्ता ही “थोड़ा सा और” की बुनियाद पर खड़ा है।
त्योहारों में भी ‘थोड़ा सा और’
त्योहारों में मिठाइयाँ बन रही हों, तो भारतीय दिमाग अपने आप एक्टिवेट हो जाता है। पहले से ही तीन रसगुल्ले खा लिए। लेकिन सामने गुलाबजामुन आया तो जुबान अपने आप बोल उठी – “भाभी जी, एक दे दो, और हाँ… चाशनी थोड़ा सा और।”
यहां तक कि हमारी bargaining स्किल्स भी इसी मंत्र पर टिकी हैं। दुकानदार बोला – “ये शर्ट 500 की है।” ग्राहक बोला – “400 कर दो।” दुकानदार बोला – “450 फाइनल।” ग्राहक बोला – “थोड़ा सा और कम कर दो।” दुकानदार बोला – “445।” ग्राहक बोला – “थोड़ा सा और।” और यह ड्रामा तब तक चलता है जब तक दुकानदार सोच न ले कि भाई इस ग्राहक को मुफ्त में दे दूँ तो भी यही बोलेगा – “थोड़ा सा और।”
बाल कटवाते समय भी यह डायलॉग चलता है। नाई बाल काट चुका है, शीशा दिखा रहा है – “कैसा लग रहा है?” और ग्राहक कहता है – “भाई, साइड्स में थोड़ा सा और छोटा कर दो।” नाई मुस्कुरा कर सोचता है – “यह ग्राहक तो गंजा भी हो जाए तो कहेगा – थोड़ा सा और।”
ATM से पैसे निकालने जाओ तो स्क्रीन पूछेगी – “500, 1000, 2000।” भारतीय बोलेगा – “अगर थोड़ा सा और निकल जाता तो मज़ा आ जाता।”
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असलियत में क्यों चाहिए हमें ‘थोड़ा सा और’?
असल में “थोड़ा सा और” हमारे डीएनए में है। यह सिर्फ पेट भरने या डिस्काउंट पाने का लालच नहीं है, बल्कि यह हमारी फिलॉसफी है – ज़िंदगी चाहे जितनी भी अच्छी हो जाए, हमेशा कुछ थोड़ा सा और चाहिए। यही हमें मेहनती भी बनाता है और जुगाड़ू भी। यही वजह है कि भारतीय कभी भी 100% पर नहीं रुकते। हमें 101% चाहिए। और अगर 101% मिल भी गया तो भी हम कहेंगे – “थोड़ा सा और जोड़ दो।”
सोचिए, अगर यह आदत न होती तो दुनिया कितनी बोरिंग होती। क्रिकेट में सचिन ने शतक मारा तो दर्शक बोले – “थोड़ा सा और मार देते तो डबल सेंचुरी हो जाती।” फिल्मों में हीरो-हीरोइन मिल गए तो दर्शक बोले – “थोड़ा सा और रोमांस दिखाते।” ऑफिस में बोनस मिला तो कर्मचारी बोला – “थोड़ा सा और मिल जाता तो EMI निकल जाती।”
यही वजह है कि भारतीय ज़िंदगी जीते हैं फुल टाइटल के साथ – Life Unlimited: थोड़ा सा और Edition. हम सबको पता है कि हमें सब कुछ नहीं मिलेगा, लेकिन फिर भी उम्मीद रखते हैं कि कहीं न कहीं कोई मिलेगा जो हमारे दिल की सुन लेगा और कहेगा – “ले भाई, ये ले… थोड़ा सा और…….तो अगली बार जब कोई कहे – “थोड़ा सा और” – तो मना मत करना। कौन जाने वही थोड़ा सा और आपके दिन को स्पेशल बना दे।
थोड़ा सा और…….लिख देते तो मजा आ जाता …..