Papa Kabhi I Love You Nahi Bolte

Papa Kabhi I Love You Nahi Bolte

“मम्मी से तो दिन में चार बार सुन लेते हैं — बेटा खाना खा लो, बेटा थक गया होगा, बेटा मैं हूँ न। पर पापा? वो बस चुपचाप ऑफिस से लौटते हैं, थैला एक कोने में रखते हैं और पूछते हैं — ‘खाना खाया?’ बस। वही था उनका ‘I love you’।”

बचपन से लेकर जवानी तक, हम पापा से प्यार की भाषा नहीं, जिम्मेदारियों की भाषा में बात करते आए हैं। और इस चुपचाप प्यार की भाषा को समझने में हमें सालों लग जाते हैं।


पापा: वो जो ATM नहीं, इमोशनली मिस्टर इंडिया हैं

पापा घर में एक अदृश्य सिस्टम की तरह होते हैं। जो दिखते कम हैं, मगर हर जगह होते हैं। आपके स्कूल की फीस से लेकर आपकी पहली बाइक तक, आपकी हॉस्टल की सुविधा से लेकर शादी के खर्च तक — वो हर जगह quietly operate करते हैं। पर कहते कुछ नहीं।

वो आपको सामने बैठाकर I love you तो नहीं बोलेंगे, लेकिन ठंड में बिना कुछ कहे आपकी चप्पल बदल देंगे ताकि पैर ठंडे न हो। आपसे बात कम करेंगे लेकिन रात 2 बजे तक तब जागते रहेंगे जब तक आप पार्टी से वापस न आ जाओ। उनके प्यार में कोई शोर नहीं होता — सिर्फ साइलेंस होता है, जिसमें सबसे ज़्यादा केयर छिपी होती है।


Emotional नहीं, Practical Superhero

हमने मम्मी को हमेशा रोते देखा — कभी सीरियल देखते हुए, कभी हमारी Report Card देखकर, कभी पापा से लड़ते हुए। पर पापा? उन्हें हम सिर्फ गुस्से में देखते हैं या चुप्पी में।

क्यों?

क्योंकि पापा की दुनिया में ‘जिम्मेदारी’ पहला धर्म होता है। उनके पास इमोशन्स का टाइम नहीं होता। वो घर चलाते हैं, परिवार को संभालते हैं, और खुद को कहीं दबा देते हैं। पर इसका मतलब ये नहीं कि वो इमोशनल नहीं होते — बस वो ‘express’ करना नहीं जानते।


याद है वो पुरानी साइकिल?

वो जो स्कूल टाइम में मिली थी। हम सोच रहे थे दोस्तों की तरह Hero cycle मिल जाएगी — गियर वाली, स्टाइलिश। पर पापा लेकर आए नीली रंग की बिना गियर वाली cycle।

हमने मुंह बनाया, शायद थोड़ा गुस्सा भी किया। पर क्या कभी सोचा, उन्होंने कितनी बार अपने खर्च काटे होंगे? शायद उन्होंने अपने नए चश्मे टाल दिए होंगे, शायद ऑफिस की कैंटीन की चाय छोड़ दी होगी। उनकी वो चुपचाप दी गई cycle भी एक ‘I love you’ ही था — practical वाला।


पापा की चुप्पी में भरा होता है प्यार

पापा कभी वीडियो कॉल पर “मिस कर रहा हूं बेटा” नहीं कहेंगे।

वो बस पूछेंगे — “खा लिया? पैसों की जरूरत है?”

हम कहेंगे, “सब ठीक है पापा,” और वो बिना ज़्यादा सवाल किए कॉल काट देंगे।

पर अगले दिन UPI में ₹5,000 ट्रांसफर दिख जाएगा।

यही होता है उनका “ख्याल रखना”।

कभी पैसों के पीछे मत देखो — उसमें वो आपकी चिंता, केयर और अदृश्य प्यार डाल कर भेजते हैं।


वो आपका नाम नहीं पुकारते, बस जिम्मेदारी से पुकारते हैं

मम्मी कहती हैं, “राजू, चल बेटा खाना खा ले।”

पापा कहते हैं — “अरे बुलाओ उसे, टाइम पर नहीं खाता है।”

मम्मी गले लगाती हैं।

पापा बस दूर से पूछते हैं — “ऑफिस कब जाना है?”

उनके सवालों में भी प्यार होता है, बस अंदाज़ अलग होता है।


Emotional बाप का डर

हमें तो डर है कि कहीं पापा रो न दें। क्योंकि अगर वो रोए — तो हमारी दुनिया हिल जाएगी।

क्योंकि पापा का इमोशनल होना हमें मजबूर कर देता है उनकी हर चुप्पी को फिर से सुनने, समझने और उनसे माफ़ी माँगने को।

पर क्या हम कभी जाकर उनसे बोले हैं — “I love you, papa”?

हम क्यों नहीं बोलते?

एक कहावत है- माँ 4 रोटी देती है तब 2 गिनती है और बाप 4 जूता मारता है तब 1 गिनता है!

माँ की ममता हमें हर उस चीज़ में दिख जाती है जिसमें ज़रा सा भी “घी” टपकता है और हर उस बात में जो कहती है – “बेटा खा ले, तू तो दिन भर भूखा रहा होगा।” वहीं बापू जी का प्यार थोड़ा अलग packaging में आता है — कम बोलते हैं, ज़्यादा मारते हैं… लेकिन प्यार वही होता है जनाब, बस expression थोड़ा “लात वाला” होता है। जूते तो सिर्फ माध्यम हैं, असली message होता है —

“तू इंसान बन जा बेटा, वर्ना मैं बना दूँगा।”


Generational Gap या Emotional Gap?

हमारी जनरेशन “Reels” में प्यार दिखाना जानती है — “I miss you Mom” वाले filters से, और “Dad my superhero” वाले captions से।पर क्या हमने कभी उनके सामने बैठकर कहा है —

“आपने जो sacrifice किया, उसके लिए थैंक्यू”?

शायद नहीं।

क्योंकि पापा से आंख मिलाकर बात करना भी मुश्किल लगता है। पर अब समय आ गया है कि हम भी ये Gap थोड़ा bridge करें। अब अगर पापा ऑफिस से देर से आएं, तो उनके सामने बैठो, चाय दो, पूछो — “आपका दिन कैसा था?” और एक बार बस धीरे से कह दो — “आप सबसे अच्छे पापा हो।” शायद वो कुछ न कहें। शायद आंखें झुका लें। शायद हल्की मुस्कान दे दें। पर अंदर वो एक छोटा सा बच्चा होगा जो कहेगा — “Finally! किसी ने समझा।”


आखिर में…

पापा वो होते हैं जो कभी “I love you” नहीं बोलते, क्योंकि वो हर दिन उसे साबित करते हैं।

वो जो चप्पल में चलकर हमारी स्कूल फीस भरते हैं।

वो जो खुद की शर्ट रिपीट करते हैं, लेकिन हमें नए कपड़े दिलाते हैं।

वो जो हर रात बेडरूम के पंखे के नीचे नहीं, ड्राइंग रूम की कुर्सी पर सोते हैं, ताकि लाइट न जले और बिजली का बिल कम आए।

तो अगली बार जब कोई कहे — “तेरे पापा तो ज्यादा कुछ बोलते नहीं” — तो बस मुस्कुरा देना, और कहना — “उनके बोलने की ज़रूरत ही नहीं, उनका प्यार हर चीज़ में दिखता है।”

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