कभी-कभी लगता है Netflix, Prime Video, Hotstar, SonyLIV, Zee5, JioCinema, Apple TV+, Voot, और अब तो आहा-महा-साहा तक आ गए हैं — सब मिलकर हमें सिर्फ एक ही काम से दूर करना चाहते हैं… “देखने से।” OTT का महासागर अब इतना गहरा हो चुका है कि viewer खुद content के बवंडर में फंसकर content overload का शिकार हो चुका है।
मतलब सोचो, एक टाइम था जब TV पर डीडी नेशनल आता था, फिर थोड़ी luxury में Star Plus और Zee TV। अब? इतना कुछ है कि तय करना मुश्किल हो गया है — देखूं क्या?
🧠 Content Overload की Dilemma: Option ज़्यादा, दिमाग कम
शाम के 8 बजे हैं
घर आ चुके हैं, खाना बन गया है, अब बस TV या मोबाइल स्क्रीन के सामने बैठकर कुछ अच्छा देखना है।
लेकिन, देखना क्या है? 🧠 जब हर प्लेटफ़ॉर्म पर Trending, Must-Watch, For You जैसे टैग दिखते हैं, तब लगता है — शायद binge-watching भी अब थकाऊ हो चुका है।
Netflix खोलो — 9,57,823 शो पड़े हैं।
Prime खोलो — और कन्फ्यूज़ हो जाओ।
Disney+ खोलो — अब याद नहीं आ रहा कि बच्चा हूं या बाप!
हर कोई चिल्ला रहा है — “देखो मुझे, मैं Trending हूँ!”
और फिर शुरू होता है वो एपिक संघर्ष — “क्या देखें?”
अब देखने के लिए तो सब कुछ है, बस दिमाग़ में फ़ैसला लेने की जगह नहीं।
1. Mood-Based Recommendations: पहले दिल से पूछो
OTT की दुनिया अब सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि influencer culture से भी भर गई है — जहां हर नया शो launch होते ही reels और reactions का सैलाब आ जाता है। कभी लगता है कुछ हल्का देखूं — फिर सामने आता है Breaking Bad
कभी सोचते हैं कुछ meaningful देखेंगे — और क्लिक हो जाता है Kapil Sharma Show
अरे भाई, पहले तो ये तय करो कि देखना क्या है:
कॉमेडी, ड्रामा, हॉरर, थ्रिलर, रोमांस, डॉक्यूमेंट्री या फिर सिर्फ वही पुरानी F.R.I.E.N.D.S?
हर दिन मूड बदलता है, और हमारे OTT प्लेटफॉर्म mood swing के लिए बिलकुल तैयार हैं — इतना ज़्यादा content है कि आपका दिमाग़ Buffering… करने लगता है।
फिर आता है वो Classic Dialog — “कुछ अच्छा बताओ यार देखने को”
आपने कभी किसी को यह कहते सुना है?
“कुछ बेकार सी चीज़ देखनी है, जो टाइम और दिमाग दोनों बर्बाद करे।”
नहीं ना?
सबको “कुछ अच्छा” चाहिए — लेकिन ये अच्छा क्या है, इसका कोई universal definition नहीं।
कभी आप दूसरों की सिफारिश पर कुछ देख लेते हो, और फिर लगता है:
“जिसने ये सजेस्ट किया, उसका दोस्ती से नाम काटो!”
🎯पहले अपना मूड पकड़ो
देखो, मूड ही सबसे बड़ा डिसाइडिंग फैक्टर होता है- तो
- अगर दिमाग में बॉस ने बहुत मार दी हो तो कोई हल्की कॉमेडी देखो (जैसे ‘TVF’, ‘Office Office’)
- अगर दिल टूटा हो तो कोई इमोशनल ड्रामा लगाओ (जैसे ‘Masaan’ या ‘The Lunchbox’)
- अगर टाइम पास करना हो, तो क्राइम थ्रिलर या सस्पेंस वाला शो खोल दो (जैसे ‘Delhi Crime’, ‘Paatal Lok’)
Mood-based search करो, genre-based नहीं। क्योंकि भाई, दिल की सुनना सबसे ज़रूरी है।
2. Content इतना कि सब OTTs भरे पड़े-
अब दिक्कत ये है कि हर प्लेटफ़ॉर्म के पास इतना content है कि आप सोचते हो —
“भाई! क्या Netflix खोलें या Prime या फिर Disney+ या JioCinema पर देखें?!”
तो सीन ऐसा होता है जैसे शादी के रिश्ते देखने गए हों —
“ये लड़का अच्छा है… लेकिन वो वाला भी ठीक है… ओह! वो तीसरा भी देख लेते हैं ना!”
और फिर देखते देखते रात के 1 बज जाते हैं — और सोते हुए खुद को समझाते हैं —
“कल पक्का तय करेंगे क्या देखना है।”
🎯 OTT Platforms पर Weekly Focus: एक बार में एक
हर हफ्ते एक ही OTT यूज़ करो। इससे दो फायदे हैं:
- आपके स्क्रॉलिंग का टाइम बचेगा
- सब्सक्रिप्शन का पैसा वसूल होगा!
किसी एक प्लेटफ़ॉर्म को महीना दो, फिर बदल लो। Netflix binge किया, फिर अगला महीना Prime या Disney+।
3. 🧠 Watchlist की बेकद्री –
हर प्लेटफ़ॉर्म पर आपने “Watch Later” में 20 शो डाल रखे हैं। लेकिन देखने का टाइम आए तो आप वहीं सेलेक्शन में घुस जाते हैं — “चलो कुछ नया देखें। रोज़ decision paralysis और endless scrolling कहीं ना कहीं आपकी mental health पर भी असर डाल रही है। कभी-कभी कम देखना ही बेहतर होता है।
” भाई! जब Watchlist बनाई थी तो देखकर ही बनाई थी ना?
तो कृपया उस Watchlist का मान रखो — वरना वो भी एक दिन कहेगी —“BMJ!” और फिर जब समय मिले, वहीं से शुरू करो — नई खोज में मत उलझो।
“हे Algorithm देवता, अब तुम ही रास्ता दिखाओ!”
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4. Reviews vs Real Feel: किसकी सुनें?
अब मान लो आप अपना मन बना चुके हो — लेकिन तभी दोस्त की सलाह आती है: “अरे वो सीरीज़ मत देख, बहुत बकवास है!” बस फिर क्या — आप अपने पसंद के शो को भी reject कर देते हो। लेकिन असल में वही शो शायद आपके मूड को match कर रहा था। ये वही सीन है जैसे किसी ने कहा — “पाव भाजी मत खा, कल खराब लगी थी।”
अब भैया, तुम्हारा स्वाद अलग था, मेरा अलग होगा ना!
दोस्तों के review, YouTube ट्रेलर, IMDB या Letterboxd की ratings ज़रूर देखो — लेकिन final decision अपने दिल से लो। अच्छा-खराब आपकी पसंद पर depend करता है, ना कि स्टार रेटिंग पर।
5. Family Viewing on OTT: सबको साथ कैसे लाएं?-
अब सबसे कठिन टास्क — Family Viewing
OTT addiction और social media addiction अब लगभग एक जैसे हो चुके हैं — एक पर नज़रे गढ़ती हैं, दूसरे पर उंगलियां। और दोनों ही आपको समय से काट देते हैं।
पापा को न्यूज देखनी है, मम्मी को रामायण, बहन को रोमांस, भाई को ऐक्शन और आप सोच रहे हो —
“काश, मैं पैदा ही नहीं हुआ होता।” ऐसे में तो “Tom & Jerry” लगाना ही सबसे safe option है।
तो ऐसे में सबका मूड पूछो, genre तय करो, फिर उस genre में से 2–3 ऑप्शन शॉर्टलिस्ट करो । वोटिंग कराओ, और जो सबसे ज़्यादा पसंद आए — वही लगाओ
🧘 अंत में –
अगर सब कुछ देखकर भी दिमाग कहे “पता नहीं क्या देखें”, तो बस आंख बंद करो और जो पहली चीज़ स्क्रीन पर आए, वो चालू कर दो।
क्योंकि ज़िंदगी की तरह ही —
कभी-कभी बिना सोचे-समझे किया गया फ़ैसला ही सबसे बढ़िया होता है।
और हां — अगर कुछ देखने लायक मिल जाए तो नीचे Comment करके बताना मत भूलना!
हो सकता है किसी और की “क्या देखें?” वाली दुविधा का हल बन जाओ।