Desi Struggles – BMJ https://bhaadmeja.com "Dil ki therapy... Lafzon ke sath..... free wali!" Tue, 23 Sep 2025 18:15:19 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.2 https://bhaadmeja.com/wp-content/uploads/2025/07/cropped-cropped-Gali_nahi_hai_bhai__yeh_toh_therapy_hai._free_wali-removebg-preview-32x32.png Desi Struggles – BMJ https://bhaadmeja.com 32 32 Makdee ki asli Spider-Man chaal https://bhaadmeja.com/desi-struggles/how-does-a-spider-cast-its-net-for-the-first-time/ https://bhaadmeja.com/desi-struggles/how-does-a-spider-cast-its-net-for-the-first-time/#respond Wed, 20 Aug 2025 17:45:15 +0000 https://bhaadmeja.com/?p=574 Spider Man की मूवी में तो… स्पाइडर-मैन, यानी पीटर पार्कर, जब बिल्डिंग से बिल्डिंग कूदता है, तो हाथ से एक जाल जैसा धागा निकलता है — थ्विप की आवाज़ होती है, और वो धागा जाकर सामने की बिल्डिंग से चिपक जाता है। उसके बाद वो उसी धागे पर झूलता, उड़ता, घूमता, स्टंट मारता और आखिर में MJ को बचा लेता है।

पर कभी सोचा है कि असल मकड़ी (Makdee), जो हमारे घर के कोनों में रहती है, पहली बार जब जाल बनाती है तो एक साइड से दूसरी साइड कैसे पहुंचती है? ना उसके पास कोई लॉन्चर है, ना रॉकेट, मकड़ी कोई हाथ से जाल नहीं फेंकती, क्योंकि उसके हाथ नहीं होते — पैर होते हैं, और उसके शरीर के पीछे की तरफ होता है स्पिनरेट (Silk Gland)।। फिर भी वो हर बार जाल बना ही लेती है। इसका राज़ चौंकाने वाला है… और थोड़ा इमोशनल भी।

Makdee ki pehli Chaal

जब मकड़ी किसी नई जगह पहुंचती है, तो वो एकदम खाली मैदान होता है। न कोई पुराना धागा, न प्लान, और न ही कोई स्पाइडर-मैन की तरह फेकने वाली डिवाइस। तो फिर कैसे एक दीवार से दूसरे दीवार पर पहला जाला जोड़ेगी। क्योंकि वो धागा पीछे से छोड़ती है। अगर वो धागा छोड़ते हुए एक साइड से दूसरी तरफ़ जायेगी तो धागा उसके पीछे चिपकता हुआ जाएगा । तो सामने वाली दीवार पर पहला धागा कैसे जोड़ेगी। लेकिन मकड़ी को पता है कि शुरुआत करनी है – और वो करती है सबसे सिंपल लेकिन जीनियस काम: हवा में धागा छोड़ती है। हां, वो पतला-सा धागा स्पिनरेट से निकलता है और हवा में उड़ता है, जैसे हम पतंग उड़ाते हैं।

ये धागा इतना हल्का होता है कि हवा उसे उड़ाकर ले जाती है। तो उसकी पूरी उम्मीद उस एक धागे पर टिकी होती है — जैसे किसी स्टार्टअप का पहला निवेश। अगर वो धागा हवा में उड़कर सामने की दीवार से चिपक गया — तो उसका “Construction Project” शुरू हो जाता है।

और अगर नहीं चिपका — तो कोई बात नहीं, फिर से कोशिश करेगी। क्योंकि मकड़ी को कोई डेडलाइन नहीं होती, ना ही कोई बॉस सर पर चिल्लाता है।और जैसे ही जुड़ाव बन गया, मकड़ी वहां तक पैदल चलकर पहुंच जाती है। यही उसका पहला “ब्रिज” होता है — पहला रास्ता, जिससे आगे पूरा जाल बनता है।

मकड़ी (Makdee) का धागा कैसे उड़ता है?

स्पिनरेट से निकलता है सुपर-फाइन सिल्क, मकड़ी के शरीर के पीछे एक खास हिस्सा होता है, जिसे स्पिनरेट कहा जाता है। यहीं से उसका खास रेशमी धागा निकलता है — इतना हल्का कि हवा में तैर सके, लेकिन इतना मजबूत कि मच्छर जैसे बदमाश उसमें फँस जाएं। जैसे ही ये धागा किसी सतह से टकराता है, वो वहीं चिपक जाता है। उसके बाद मकड़ी उस पर चलकर अपनी जाल इंजीनियरिंग शुरू कर देती है।

Makdee उड़ती भी है क्या?

हां जी! थोड़ी बहुत, और कभी-कभी मीलों दूर तक भी

छोटी मकड़ियाँ खास मौकों पर Ballooning नाम की तकनीक यूज़ करती हैं, जिसमें वो धागा छोड़कर खुद को हवा में तैरने देती हैं — जैसे मिनी-पैराशूट। ये तरीका उन्हें नए-नए ठिकानों तक पहुंचाता है। कभी-कभी तो हवा उन्हें किलोमीटरों दूर तक ले जाती है। अब बताइए, ऐसा कौन-सा सुपरहीरो करता है?

अब जब हमने जान लिया कि मकड़ी पहली बार दीवार से दीवार कैसे उड़ती है, तो चलिए अब थोड़ी और मकड़ी-ज्ञान की चटनी में डुबकी लगाते हैं। क्योंकि भाई, मकड़ी सिर्फ जाला नहीं बुनती — ये अपने छोटे-से पैरों और सुपर-सिल्क से पूरी दुनिया को चौंका देती है। लोगों के मन में एक से बढ़कर एक सवाल हैं — क्या मकड़ी का जाला शुभ होता है? इसे मारना पाप है क्या? जाला बनता किस चीज़ का है? और मकड़ी को खाना क्या पसंद है? तो आइए, अब इन People Also Ask” वाले सवालों का भी मज़ेदार और सीधा जवाब ढूंढते हैं

मकड़ी का जाला घर में शुभ है या अशुभ — ये तो नज़रिए की बात है। मम्मी के लिए अशुभ, क्योंकि वो साफ़-सफ़ाई की कसम खाकर पैदा हुई हैं, लेकिन वैज्ञानिकों के लिए शुभ, क्योंकि मकड़ी मच्छर-मक्खियों को खा के हमें बचाती है। एक शोध के अनुसार, दुनिया भर की मकड़ियाँ हर साल 400 से 800 मिलियन टन कीड़े-मकोड़े खा जाती हैं, जिससे वो हमारे प्राकृतिक पेस्ट कंट्रोलर बन जाती हैं (Nyffeler & Birkhofer, 2017, The Science of Nature)। वैसे उस जाले को अंग्रेज़ी में Spider Web कहते हैं, और मकड़ी उसे रचती है अपने पेट से निकलने वाले खास रेशे से — यानी जाला असल में प्रोटीन से बना होता है, ना कि किसी दुकान से खरीदी गई धागा रील से। और जाले को हटाने के लिए झाड़ू, स्प्रे, और थोड़ी सी इंसानियत चाहिए — मकड़ी भी इंसान से डरती है, यार! अब बात करें कि मकड़ी जाल क्यों बनाती है, तो वो उसकी ज़िंदगी का सबकुछ है — खाना पकड़ना, घर बनाना, और कभी-कभी दूसरों को डराना।

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लेकिन ध्यान रखना, मकड़ी को मारना नहीं चाहिए, क्योंकि वो हमारे लिए नेचुरल पेस्ट कंट्रोल है। ये छोटे जीव मक्खी, मच्छर, और अन्य हानिकारक कीटों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, जिससे हमारे पर्यावरण में संतुलन बना रहता है। अधिक जानकारी के लिए आप Smithsonian या National Geographic जैसे विश्वसनीय स्रोतों पर ‘ecological benefits of spiders’ सर्च कर सकते हैं। वैसे इतिहास में एक मकड़ी का राजा भी हुआ — जब Robert the Bruce ने जब कई लड़ाइयों में हार झेली थी, तो एक गुफा में छुपते हुए उन्होंने देखा कि एक मकड़ी बार-बार अपने जाले को जोड़ने की कोशिश कर रही थी। कई बार गिरने के बावजूद जब वह मकड़ी अंततः सफल हो गई, तो उसने Robert को फिर से प्रयास करने की प्रेरणा दी।

यह कहानी स्कॉटलैंड की लोकप्रिय लोककथा का हिस्सा है और इतिहास में इसे Bruce की दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। खाने में मकड़ी कुछ खास नहीं मांगती — मच्छर, मक्खियाँ, और जो भी जाल में फँसे, वही उसका फाइव-स्टार लंच है। और उम्र? कुछ मकड़ियाँ 1-2 साल जीती हैं, और कुछ Tarantula जैसी VIP मकड़ियाँ 20 साल तक — मतलब मकड़ी भी “Old is Gold” वाला केस है।

अगर आपको लगा कि ये सिर्फ एक मकड़ी (Makdee) की कहानी थी, तो आप गलत नहीं हैं… पर पूरी तरह सही भी नहीं। क्योंकि कभी-कभी जिंदगी में भी वही करना होता है — धागा छोड़ दो… हवा खुद रास्ता दिखा देगी।

ऐसे ही हँसी, हकीकत और हलचल से भरे मजेदार लेख पढ़ते रहिए — BhaadMeJa.com पर!
जहां हर लाइन हँसी में लिपटी होती है… और हर मकड़ी भी थोड़ी सी इंसान होती है।

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What to Watch? OTT का महासागर viewers को बना रहा है confused! https://bhaadmeja.com/desi-struggles/what-to-watch-ott/ https://bhaadmeja.com/desi-struggles/what-to-watch-ott/#respond Fri, 18 Jul 2025 17:00:47 +0000 https://bhaadmeja.com/?p=373 कभी-कभी लगता है Netflix, Prime Video, Hotstar, SonyLIV, Zee5, JioCinema, Apple TV+, Voot, और अब तो आहा-महा-साहा तक आ गए हैं — सब मिलकर हमें सिर्फ एक ही काम से दूर करना चाहते हैं… “देखने से।” OTT का महासागर अब इतना गहरा हो चुका है कि viewer खुद content के बवंडर में फंसकर content overload का शिकार हो चुका है।

मतलब सोचो, एक टाइम था जब TV पर डीडी नेशनल आता था, फिर थोड़ी luxury में Star Plus और Zee TV। अब? इतना कुछ है कि तय करना मुश्किल हो गया है — देखूं क्या?

🧠 Content Overload की Dilemma: Option ज़्यादा, दिमाग कम

शाम के 8 बजे हैं
घर आ चुके हैं, खाना बन गया है, अब बस TV या मोबाइल स्क्रीन के सामने बैठकर कुछ अच्छा देखना है
लेकिन, देखना क्या है? 🧠 जब हर प्लेटफ़ॉर्म पर Trending, Must-Watch, For You जैसे टैग दिखते हैं, तब लगता है — शायद binge-watching भी अब थकाऊ हो चुका है।

Netflix खोलो — 9,57,823 शो पड़े हैं।
Prime खोलो — और कन्फ्यूज़ हो जाओ।
Disney+ खोलो — अब याद नहीं आ रहा कि बच्चा हूं या बाप!

हर कोई चिल्ला रहा है — “देखो मुझे, मैं Trending हूँ!”
और फिर शुरू होता है वो एपिक संघर्ष — “क्या देखें?”

अब देखने के लिए तो सब कुछ है, बस दिमाग़ में फ़ैसला लेने की जगह नहीं।

1. Mood-Based Recommendations: पहले दिल से पूछो

OTT की दुनिया अब सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि influencer culture से भी भर गई है — जहां हर नया शो launch होते ही reels और reactions का सैलाब आ जाता है। कभी लगता है कुछ हल्का देखूं — फिर सामने आता है Breaking Bad
कभी सोचते हैं कुछ meaningful देखेंगे — और क्लिक हो जाता है Kapil Sharma Show
अरे भाई, पहले तो ये तय करो कि देखना क्या है:
कॉमेडी, ड्रामा, हॉरर, थ्रिलर, रोमांस, डॉक्यूमेंट्री या फिर सिर्फ वही पुरानी F.R.I.E.N.D.S?

हर दिन मूड बदलता है, और हमारे OTT प्लेटफॉर्म mood swing के लिए बिलकुल तैयार हैं — इतना ज़्यादा content है कि आपका दिमाग़ Buffering… करने लगता है।

फिर आता है वो Classic Dialog — “कुछ अच्छा बताओ यार देखने को”

आपने कभी किसी को यह कहते सुना है?

“कुछ बेकार सी चीज़ देखनी है, जो टाइम और दिमाग दोनों बर्बाद करे।”

नहीं ना?

सबको “कुछ अच्छा” चाहिए — लेकिन ये अच्छा क्या है, इसका कोई universal definition नहीं।

कभी आप दूसरों की सिफारिश पर कुछ देख लेते हो, और फिर लगता है:

“जिसने ये सजेस्ट किया, उसका दोस्ती से नाम काटो!”

🎯पहले अपना मूड पकड़ो

देखो, मूड ही सबसे बड़ा डिसाइडिंग फैक्टर होता है- तो

  • अगर दिमाग में बॉस ने बहुत मार दी हो तो कोई हल्की कॉमेडी देखो (जैसे ‘TVF’, ‘Office Office’)
  • अगर दिल टूटा हो तो कोई इमोशनल ड्रामा लगाओ (जैसे ‘Masaan’ या ‘The Lunchbox’)
  • अगर टाइम पास करना हो, तो क्राइम थ्रिलर या सस्पेंस वाला शो खोल दो (जैसे ‘Delhi Crime’, ‘Paatal Lok’)

Mood-based search करो, genre-based नहीं। क्योंकि भाई, दिल की सुनना सबसे ज़रूरी है।

2. Content इतना कि सब OTTs भरे पड़े-

अब दिक्कत ये है कि हर प्लेटफ़ॉर्म के पास इतना content है कि आप सोचते हो —
“भाई! क्या Netflix खोलें या Prime या फिर Disney+ या JioCinema पर देखें?!”

तो सीन ऐसा होता है जैसे शादी के रिश्ते देखने गए हों —
“ये लड़का अच्छा है… लेकिन वो वाला भी ठीक है… ओह! वो तीसरा भी देख लेते हैं ना!”

और फिर देखते देखते रात के 1 बज जाते हैं — और सोते हुए खुद को समझाते हैं —
“कल पक्का तय करेंगे क्या देखना है।”

🎯 OTT Platforms पर Weekly Focus: एक बार में एक

हर हफ्ते एक ही OTT यूज़ करो। इससे दो फायदे हैं:

  1. आपके स्क्रॉलिंग का टाइम बचेगा
  2. सब्सक्रिप्शन का पैसा वसूल होगा!

किसी एक प्लेटफ़ॉर्म को महीना दो, फिर बदल लो। Netflix binge किया, फिर अगला महीना Prime या Disney+।

3. 🧠 Watchlist की बेकद्री –

हर प्लेटफ़ॉर्म पर आपने “Watch Later” में 20 शो डाल रखे हैं। लेकिन देखने का टाइम आए तो आप वहीं सेलेक्शन में घुस जाते हैं — “चलो कुछ नया देखें। रोज़ decision paralysis और endless scrolling कहीं ना कहीं आपकी mental health पर भी असर डाल रही है। कभी-कभी कम देखना ही बेहतर होता है।

” भाई! जब Watchlist बनाई थी तो देखकर ही बनाई थी ना?

तो कृपया उस Watchlist का मान रखो — वरना वो भी एक दिन कहेगी —“BMJ!” और फिर जब समय मिले, वहीं से शुरू करो — नई खोज में मत उलझो

“हे Algorithm देवता, अब तुम ही रास्ता दिखाओ!”

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4. Reviews vs Real Feel: किसकी सुनें?

अब मान लो आप अपना मन बना चुके हो — लेकिन तभी दोस्त की सलाह आती है: “अरे वो सीरीज़ मत देख, बहुत बकवास है!” बस फिर क्या — आप अपने पसंद के शो को भी reject कर देते हो। लेकिन असल में वही शो शायद आपके मूड को match कर रहा था। ये वही सीन है जैसे किसी ने कहा — “पाव भाजी मत खा, कल खराब लगी थी।”

अब भैया, तुम्हारा स्वाद अलग था, मेरा अलग होगा ना!

दोस्तों के review, YouTube ट्रेलर, IMDB या Letterboxd की ratings ज़रूर देखो — लेकिन final decision अपने दिल से लो। अच्छा-खराब आपकी पसंद पर depend करता है, ना कि स्टार रेटिंग पर।

5. Family Viewing on OTT: सबको साथ कैसे लाएं?-

अब सबसे कठिन टास्क — Family Viewing

OTT addiction और social media addiction अब लगभग एक जैसे हो चुके हैं — एक पर नज़रे गढ़ती हैं, दूसरे पर उंगलियां। और दोनों ही आपको समय से काट देते हैं।

पापा को न्यूज देखनी है, मम्मी को रामायण, बहन को रोमांस, भाई को ऐक्शन और आप सोच रहे हो —
“काश, मैं पैदा ही नहीं हुआ होता।” ऐसे में तो “Tom & Jerry” लगाना ही सबसे safe option है।

तो ऐसे में सबका मूड पूछो, genre तय करो, फिर उस genre में से 2–3 ऑप्शन शॉर्टलिस्ट करो । वोटिंग कराओ, और जो सबसे ज़्यादा पसंद आए — वही लगाओ

🧘 अंत में –

अगर सब कुछ देखकर भी दिमाग कहे “पता नहीं क्या देखें”, तो बस आंख बंद करो और जो पहली चीज़ स्क्रीन पर आए, वो चालू कर दो।

क्योंकि ज़िंदगी की तरह ही —
कभी-कभी बिना सोचे-समझे किया गया फ़ैसला ही सबसे बढ़िया होता है।

और हां — अगर कुछ देखने लायक मिल जाए तो नीचे Comment करके बताना मत भूलना!
हो सकता है किसी और की “क्या देखें?” वाली दुविधा का हल बन जाओ।

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From ‘nahi hoga’ to ‘ho gaya’ – UPSC https://bhaadmeja.com/desi-struggles/upsc-success-story/ https://bhaadmeja.com/desi-struggles/upsc-success-story/#respond Thu, 10 Jul 2025 18:24:30 +0000 https://bhaadmeja.com/?p=277 UPSC Success Story :- “आप गरीब हो सकते हैं, गांव से हो सकते हैं, इंग्लिश नहीं आती हो सकती है, लेकिन अगर आप ठान लें… तो UPSC भी आपकी चाय की प्याली बन सकती है।”

UPSC—एक ऐसा सपना, जो देश के हर गली-कूचे में किसी न किसी की आंखों में पल रहा होता है। और क्यों न हो? ये वो परीक्षा है जो सिर्फ दिमाग नहीं, दिल भी मांगती है। मेहनत, लगन, त्याग, और कई बार—बहुत सारा धैर्य।

आज हम आपको मिलवाते हैं उन रियल हीरोज़ से, जिनके पास न तो बड़ा शहर था, न महंगी कोचिंग, और न ही कोई शाही बैकग्राउंड—लेकिन था तो सिर्फ एक सपना: देश सेवा का।


1. डॉ. रेनू राज – एक डॉक्टर, जिसने इलाज नहीं, व्यवस्था बदलने को चुना

डॉ. रेनू राज, एक गरीब परिवार की बेटी, पहले डॉक्टर बनीं फिर IAS। मेडिकल की ड्यूटी करते-करते जब उन्होंने देखा कि बीमारियों के पीछे गरीबी और सिस्टम की असफलता है, तो उन्होंने निर्णय लिया कि इलाज से ज्यादा ज़रूरी सिस्टम को सुधारना है।

उन्होंने अस्पताल की नाइट शिफ्ट के बाद पढ़ाई की, और पहले ही प्रयास में UPSC क्लियर कर AIR 2 हासिल की। आज वो सिर्फ IAS अफसर नहीं हैं, बल्कि लाखों लड़कियों की उम्मीद हैं।


2. विपिन केशव (IAS Vibhor Bhardwaj) – जब AI बना दोस्त और गुरु

जब सब कोचिंग ज्वॉइन करने में लगे थे, तब विपिन भैया गूगल से चैट कर रहे थे। जी हां, AI टूल्स जैसे Gemini और ChatGPT की मदद से उन्होंने UPSC की तैयारी की।

Physics जैसे कठिन सब्जेक्ट को Optional चुना, ऑनलाइन क्लास और खुद की बनाई नोट्स से पढ़ाई की। पहली बार IAS नहीं बने, लेकिन हार नहीं मानी। तीसरे प्रयास में AIR 19 के साथ बन गए पूरे देश के लिए उदाहरण।


3. नेहा जैन – दिन में नौकरी, रात में तैयारी

Morwa, Singrauli की नेहा जैन IT की जॉब में थीं, लेकिन दिल में देश की सेवा का सपना था। भाई IAS हैं, उनसे प्रेरणा मिली।

कोचिंग नहीं ली, खुद से पढ़ाई की। दो बार फेल हुईं, पर हिम्मत नहीं हारी। तीसरी बार AIR 152 लाकर बन गईं IPS अफसर। अब वही नेहा, जो कभी Excel शीट बनाती थीं, अब असली जिंदगी की जटिलताओं को सुलझा रही हैं।


4. आदित्य पटेल – गांव से उठकर DRDO तक

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले से आने वाले आदित्य का सपना था DM बनना, लेकिन किस्मत उन्हें ले गई DRDO के डायरेक्टर पद तक। पहले UPSC क्लियर किया, फिर वायुसेना में सेवा दी, और आज वो रक्षा अनुसंधान में देश की सुरक्षा को और मज़बूत बना रहे हैं।

सबसे खास बात? वो आज भी मुकेश नगर की कोचिंग में गरीब बच्चों को फ्री पढ़ाते हैं। जो कुछ उन्होंने पाया, उसे समाज को लौटा रहे हैं।


5. सुरभि गौतम – गांव की वो लड़की, जिसे अंग्रेजी ने डराया लेकिन हरा न सकी

एक गांव की लड़की, जिसने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की, जिसे अंग्रेज़ी नहीं आती थी, जिसे कॉलेज में मज़ाक उड़ाया गया… लेकिन जिसने हार नहीं मानी।

सुरभि ने ISRO, BARC, IES और IAS—all क्लियर किया। साल 2016 में AIR 50 के साथ बन गईं IAS अफसर। उनका जज़्बा? हर दिन 10 नए अंग्रेज़ी शब्द याद करना, बीमारी में भी पढ़ाई जारी रखना और अंत में गोल्ड मेडल के साथ कॉलेज से निकलना।


6. श्रुष्टि देशमुख – IAS बनीं, फिर IAS से ही शादी भी की!

2018 में पहली बार में ही UPSC क्लियर किया, AIR 5 लाकर टॉप महिला कैंडिडेट बनीं। इंजीनियरिंग के साथ-साथ पढ़ाई, सोशल मीडिया की सेंसेशन और अब एक प्रेरणा।

उनकी लव स्टोरी भी कम फिल्मी नहीं—IAS ट्रेनिंग के दौरान मिलीं डॉ. नागार्जुन से, दोनों ने सगाई की और फिर शादी। अब ये IAS जोड़ी देश सेवा और इंटरनेट दोनों में सुपरहिट है।


क्या सिखाती हैं ये कहानियां?

  • “कोचिंग जरूरी नहीं, कमिटमेंट जरूरी है”
  • “अगर एक बस कंडक्टर की बेटी AIR 2 ला सकती है, तो आप क्यों नहीं?”
  • “AI, इंटरनेट, YouTube — सही इस्तेमाल किया जाए तो भगवान से कम नहीं”
  • “तीन बार फेल? कोई बात नहीं। चौथी बार इतिहास लिखो”

“लेकिन मेरी इंग्लिश कमजोर है…”

भाई, सुरभि गौतम की भी थी। लेकिन उसने अंग्रेजी के डर को चाय में डुबोकर पी लिया। आज वो IAS हैं, और वो भी गोल्ड मेडलिस्ट।

“मेरे पास पैसा नहीं है…”

डॉ. रेनू राज के पापा बस कंडक्टर थे। लेकिन सपनों में कभी किराया नहीं लगता। आप भी चल सकते हैं।

“मेरे पास टाइम नहीं है…”

नेहा जैन ऑफिस के बाद पढ़ाई करती थीं। अगर रात में Netflix बंद कर दोगे, तो टाइम अपने आप मिल जाएगा।


इस देश में IAS बनने के लिए जादू नहीं चाहिए—जुनून चाहिए।

कोई भी बहाना हो, इन कहानियों को पढ़ने के बाद बस एक चीज़ कहनी चाहिए — “अगर ये कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं?”

आज इंटरनेट है, फ्री मटेरियल है, टॉपर्स की स्ट्रैटेजी हर जगह है। बस चाहिए तो एक सीट, एक कमरा, और एक जुनून।


चलो अब करते हैं थोड़ी खुद से बात…

“तू कर सकता है क्या?”
हाँ कर सकता हूं।

“क्या होगा अगर फेल हो गए?”
कुछ नहीं, फिर से कोशिश करेंगे।

“लोग क्या कहेंगे?”
वही जो हमेशा कहते हैं, लेकिन एक दिन कहेंगे — “देखा! कहा था, ये लड़का/लड़की कुछ बड़ा करेगा।”

BMJ Thought 💭 क्योंकि जो खुद बदलते हैं, वही देश को बदलते हैं।IAS बनो, IPS बनो, IRS बनो — या जो मन हो बनो — लेकिन अपने सपनों से मत भागो।आज नहीं तो कल… लेकिन जब भी बनोगे — लोग कहेंगे: “सच्ची में, ये तो हमारे गांव, मोहल्ले, या शहर का गौरव बन गया!”

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